जिंदगी एक एहसास
वाकई जिंदगी भी
कितनी अजीब हैं, मिलती हैं हमे जीने के लिए और हम इसे पाने में ही इसे खो देते
हैं, वक्त गुजर जाता हैं, बड़े से बड़ा बादशाह भी वक्त नहीं खरीद पाया महान सिकंदर
ने भी एक फरमाइश की थी कि उसके जनाज़े के पीछे उसकी कमाई गई धन-दौलत को बिछाया जाये
ताकि लोग जान पाये की न तो इससे वक्त को ख़रीदा जा सकता हैं और न ही इसे साथ
ले जाया जा सकता
हैं, हर किसी की बस एक ही मंजिल हैं उसकी कब्र...........
ऐ जिंदगी ..............
तुझे पाने की जुस्तजू में
जाने कितने फना हुए
बनते थे जो बादशाह यहाँ
वो मुश्त-ऐ-ख़ाक हुए
बड़ा फ़क्र था उन्हें ख़ुदी पर,
बड़ा फ़क्र था उन्हें ख़ुदी पर
नहीं पड़ते थे पाँव जमीं पर
वक्त की आगोश में देखो
क्या सूरत-ऐ-हाल हुए
जिस जमीं से डरते थे वो
जिस जमीं से डरते थे वो
आज उसी की ख़ाक हुए
बड़ा अजब हैं तू ऐ खुदा
तून्हें नहीं किसी को बक्शा
सुल्तान हो या उसकी सल्तनत
हर दौर को अस्र ने रौंदा
तब ऐ जिंदगी कहाँ हैं तू
रहीस की रहीसी में
या फ़क़ीर की फ़कीरी में
शायर के ख़्वाब में या
आबिद की इबादत में
क्या हैं तू ऐ जिंदगी
शायद ही कोई समझा हैं तुझे
अहसास किया हैं...............
गुनगुनाया हैं तेरी हर नज़्म को
मिलाया हैं रूह को जिस्म में
जिया हैं जिंदगी जिन्दादिली से
महसूस करते हुए इसकी हर खलिश को
मेरे लिए तो तू ऐ जिंदगी
एक एहसास हैं...............
कहीं और कहाँ तलाश करूं
जब सारी कायनात ही मेरे पास हैं
तुझे ढूंढू ख़ुदी में
गुस्ताखी थोडा कम करूं
जिंदगी हैं या जलजला
जिंदगी हैं या जलजला
क्या तुझे एहसास करूं
कौन इसे क्या समझे
सबकी अपनी ज़हानत हैं
और फिर वक्त से मिले
सबके तज़ुर्बे भी तो
मुख्तलिफ़ हैं.....
मेरा तजुर्बा मुझसे कहता
जितना सोचो जितना समझो
जिंदगी और कुछ नहीं
जिंदगी एक एहसास हैं1
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